शिक्षा का उद्देश्य केवल शिक्षित होना नहीं होता, शिक्षा का यह भी उद्देश्य यह भी नहीं की हम किसी विषय की परीक्षा में पास या फेल हों, शिक्षा के अपने बहुआयामी उद्देश्य होते हैं, जिसे कई शिक्षाविदों ने अलग अलग परिभाषित किया है दिये दिये गए हैं :-
महात्मा गांधी – “शिक्षा मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सरोत्कृष्ट विकास से है”
- स्वामी विवेकानंद – “मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है”
- राधा मुकुन्द मुखर्जी के अनुशार – “प्राचीन काल में शिक्षा मोक्ष के लिए आत्म ज्ञान का साधन थी, इस प्रकार शिक्षा जीवन के अंतिम उद्देश्य यानि मोक्ष प्राप्ति का साधन मानी जाती थी।
- राधा मुकुन्द मुखर्जी के अनुशार – “प्राचीन काल में शिक्षा मोक्ष के लिए आत्म ज्ञान का साधन थी, इस प्रकार शिक्षा जीवन के अंतिम उद्देश्य यानि मोक्ष प्राप्ति का साधन मानी जाती थी।
- पेस्टालॉजी – शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का समंजस्यपूर्ण एवं प्रकृतिक प्रगतिशील विकाश है।
- राष्ट्रिय आयोग 1964-66 के अनुशार – “शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक सामाजिक विकाश का शक्तिशाली साधन है। शिक्षा राष्ट्रिय सम्मपन्नता व राष्ट्र कल्याण की कुंजी है।
इस तरह अलग-अलग व्यक्तियों ने अलग-अलग तरीके से जीवन में शिक्षा के उद्देश्य को समझाने का प्रयश किया है। शिक्षा के कई अन्य सार्थक उद्देश्य भी हो सकते हैं। शिक्षा भी मनुष्यों को दो अलग प्रजातियों में बांटती है, शिक्षित व अशिक्षित व्यक्ति। मनुष्य का व्यक्तित्व बताता है की वह किस तरह से शिक्षित हुआ है। शिक्षा लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक उत्तम साधन है शिक्षित होने के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो यह भी इसी दिशा में जाता है जैसा की शिक्षाविदों ने बताया है, विज्ञान भी जीवन की उत्पत्ति एवं सुखद अंत या फिर जीवन एवं मृत्यु से जुड़े सबसे वृहद सवालों के जवाब खोजने में लगा है।
आज शिक्षा के व्यवसायीकरण होने के कारण सभी वर्ग के बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो गया है, जिस क्षेत्र में आज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चे जाना चाहते हैं जिस शिक्षा को प्राप्त करने का उनका मन होता है वे वहाँ नही पहुँच पाते यूं तो शिक्षा पर सबका समान अधिकार है यह कहा जाता है किन्तु असली जीवन में यह बिलकुल उलट है। इस विषय में हमें हर संभव प्रयास की जरूरत है जिससे शिक्षा का समान वितरण संभव हो सके।
शिक्षा का व्यक्तिगत उद्देश्य भी हो सकता है स्वयं में तृप्त होना शिक्षा का एक लक्ष्य हो सकता, यदि मानव व्याक्तिगत रूप से स्वयं में आत्मशांति के लक्ष्य को पूर्ण कर लेता है तो यह शिक्षा का एक उचित पड़ाव होगा।
शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य यह कहता है की किसी भी जीव का समाज होता है एवं वह शिक्षा के द्वारा हमेशा प्रगतिशील होता है जीव समाज में रहकर ही अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है एवं अच्छी तरह से अपने समाज को शिक्षित कर सकता है
शिक्षित होना केवल बाहरी उद्देश्यों को की पूर्ति करना नही है शिक्षा पाकर मनुष्य आत्म ज्ञान की प्राप्ति भी करते हैं शिक्षा के अनावश्यक उद्देश्यों के पीछे पड़कर आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता है आत्मज्ञान के आलग ही अपने आयाम हैं जो प्राचीन काल ए ही मनुष्यों को सिखाये जाते हैं यह योग से संभव हो सकता है।
शिक्षा के आम उद्देश्यों में चरित्र निर्माण भी अहम भूमिका रखता है अच्छी शिक्षा प्रपट करके हम एक अच्छे चरित्र का निर्माण कर सकते हैं, यदि मनुष्य का चरित्र अच्छा हो तो स्वभाव भी स्वतः निर्मल होता है, और यह मदद करता है उज्ज्वल भविष्य व अच्छा समाज बनाने में जो जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण है।
शिक्षा से कौशल व कौशल से सुख समृद्धि होती है यदि सुखी जीवन व्यतीत करना है तब हममे कौशल की बहुत आवश्यकता होती है जो शिक्षा के बिना संभव नही है। आज कौशल प्राप्त करने के लिए अनेक साधन हैं किन्तु पहले यह वंशानुगत था, जो धीरे-धीरे अब सभी के लिए समान है। शिक्षा का वंशानुगत प्रसार ही आज वर्ण भेद, बड़ा-छोटा, ऊंचा-नीचा, जैसे अनेक भिन्नता लेकर आया है।