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खेल हो या जीवन, केवल जीत का लक्ष्य ना रखें

केवल जीत हासिल करने के लिए मत खेलो! यह बात सुनने में अजीब लगेगी, क्योंकि हम तो यहीं जानते हैं कि खेल का उद्देश्य ही जीतना होता है। खेल और जीवन का लक्ष्य समान ही होता है। खेल में हमें बाज़ी जीतनी होती है और जीवन में संघर्षों का सामना कर सफलता हासिल करनी होती है। लेकिन दोनों में केवल जीत की भावना लेकर पारी नहीं खेलनी चाहिए, बल्कि खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए वो सबकुछ करना चाहिए जिसकी काबिलियत आपके भीतर है। और आपका सबसे बेहतर प्रदर्शन जो होगा वो आपकी जीत से कहीं ज्यादा और ऊपर होगा।

खेल का मैदान हो या जीवन का सफर, हमेशा अपना बेस्ट देने की कोशिश करें, उसके बाद जीत हासिल हुई तो ठीक और यदि हारे भी तो वो हार काफी हद तक जीत से बेहतर होगी।

केवल जीतने का उद्देश्य लेकर यदि आप चल रहे हो, तो आपके दिमाग में हमेशा सामने वाला पक्ष हावी रहेगा। आपकी यही सोच रहेगी कि यदि वह आपसे अधिक बलवान है तो कैसे आप उससे बेहतर बने, लेकिन सोचिए, यदि वो आपसे कमजोर निकला तो फिर उस जीत का क्या फायदा? और यदि आपको लगे कि वो आपसे अधिक शक्तिशाली है, तो हो सकता है कि यह सिर्फ आपकी सोच मात्र हो।

ऐसे में कभी भी दूसरे से स्पर्धा ना करें, बल्कि स्वयं के प्रतिद्वंदी बनें और उसके बाद जो सफलता आपको मिलेगी और जो मज़बूत खिलाड़ी बनकर आप उभरेंगे, उसकी बात ही कुछ अलग होगी। उस एहसास के सामने आपको जीत भी छोटी लगने लगेगी।

हमेशा यह ध्यान रखें कि हार में भी जीत होती है। हर इंसान अपने आप में अच्छा होता है, ऐसे में अपने प्रतिस्पर्धी और परिस्थितियों पर अधिक विचार ना करते हुए, लगातार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते रहें।

कभी भी अपने प्रतिद्वंदी को ख़ुद से कमज़ोर समझकर अपने प्रदर्शन पर बुरा प्रभाव पड़ने ना दें। कई बार हमारी सोच बन जाती है कि यदि सामने वाला हमारी तरह नहीं है तो हम परेशान होते है और कम मेहनत करने की सोचते है जो ग़लत है क्योकि हमारी इसी सोच को आगे चलकर आदत बनते देर नहीं लगेगी। ऐसे में भले ही आपका सामना किसी कमज़ोर व्यक्ति से ही क्यों ना हो, आपको हर पल खुद को चुनौती देते हुए अपना शत-प्रतिशत देना चाहिए।

सर्वश्रेष्ठता या उत्कृष्टता जीवन जीने का एक तरीका होता है। कभी भी यह ना सोचे कि कि केवल कुछ ख़ास मौकों पर ही आप बाज़ी मार ले जाने वाली पारी खेलेंगे और बाकी जगहों पर अपना औसत देंगे तो ऐसी सोच को अपने दिमाग में पनपने ना दें, क्योंकि आपकी यह सोच आपका ही नुकसान कर सकती है।

एक बार यदि आपको यह आदत लग गई तो फिर आगे चाहकर भी आप अपना प्रदर्शन बेहतर नहीं कर पाएंगे। यह बात ध्यान में रखें कि मन, मस्तिष्क और शरीर को निरंतर अभ्यास की ज़रूरत है और यह छूट गया तो भविष्य में चाहकर भी आप अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे।

ऐसे में किसी भी अंजाम या परिणाम की चिंता किए बगैर जीवन की हर रेस में एक मज़बूत और बेहतर खिलाड़ी बनकर मैदान में उतरें और उत्कृष्ट प्रदर्शन करें। हर खिलाड़ी का यह धर्म होता है कि वो लगातार अच्छा खेले। फिर चाहे वो खेल का मैदान हो, या जीवन की कोई अग्निपरीक्षा।

Krishna Mishra

About Author: Krishna Mishra has a total work experience of 2 years in the corporate world. He is a Software Engineer and has been working with STEM Learning for the last 2 months.

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