इस दौर में आने वाली पीढ़ी के लिए यह चिंतनीय विषय बन गया है की आज हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को किस प्रकार की शिक्षा प्रदान करें? जिससे हमारे सभी पक्षों का विकाश संभव हो सके। शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य के अंदर संस्कार, सद्गुण और आत्मनिर्भर बनाना है। किन्तु आज हम आधिकतर बच्चों को आज की शिक्षा से अमर्यादित, अहंकारी आधी बनते देखते हैं, इस समय बच्चों में सर्टिफिकेट के लिए होड़ लगी हुई है और तो और आधिकतर लोगों का देखने का नजरिया भी यही है की जो जितने अधिक कागज के टुकड़ों [डिग्रियाँ] को प्राप्त कर लेता है उनके नजरों में वह उतना ही महान होता है बाहरी आडंबर के चलते हम हमारी सभ्यता को भूलकर पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव में स्वयं को उद्दंड स्वभाव वाले बनाने के रास्ते पर चल पड़े हैं। आज बच्चे तर्कहीन मशीन रट्टू तोते बनते जा रहे हैं इस तरह वे अपने बौद्धधिक स्तर का विकाश नहीं कर पाते। और समाज में भी पिछड़ जाते हैं,
गांधी जी ने “यंग इण्डिया” में लिखा है “विध्यार्थी को राष्ट्र का निर्माता बनना है” हमारी पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए जिससे राष्ट्र निर्माण हो सके बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें बच्चे निम्न विचारों का त्यागकर सकें। जाती, धर्म, वर्ण,प्रांत,वर्ग, जैसी संकीर्णताओं से निकल सकें। मानवता का प्रसार हो विध्यार्थियों का मानसिक व शारीरिक विकाश हो सके।
पढ़ाई या ज्ञान मुख्यतः 2 तरीकों से अच्छी तरह प्राप्त होता 1. विध्यार्थी स्वयं प्रेक्टिकल करके देखे, 2. पुस्तकों, ग्रन्थों आदि द्वारा। दूसरे तरीके से सटीक तरह से सीखना संभव नहीं है क्यूंकी इस तरह से सीखने में अनुभव नही मिल पता है, दूसरे तरीके से सीखना आसान भी है और इसमें अनुभव भी होता है। एवं यह तभी संभव है जब हम किसी बात की प्रायोगिक तरीके से पुष्टि करें। आज हमें एसी शिक्षा के अनुशरण करने की जरूरत है जो बच्चों में कौशल विकसित कर सके। इस समय में बेरोजगारी अपना विकराल रूप ले चुकी है एसे में जरूरत है की हम कोई काम या कौशल सीखें जिससे यह समस्या का भी हल हो सके।
शिक्षा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक मनुष्यों में दया, प्रेम, अपनापन, उदारता जैसे गुण विकसित नही हो जाते, क्यूंकी इन गुणो के आभाव में मनुष्य