कहते हैं, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, इसका अर्थ है कि जब जीवित रहने के लिए कुछ जरूरी हो जाता है तो मानव किसी भी तरह से उसे प्राप्त करने के लिए जुट जाता है। किन्तु यह भी सच है कि आवश्यकता ही विज्ञान भी है, जिसे हम आविष्कार के नाम से जानते हैं। आविष्कार किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे वैज्ञानिक, आध्यात्मिक या फिर कोई और तरीके का। तो चलिए आध्यात्मिक और वैज्ञानिक आवश्यकताओं को थोड़ा विस्तार से समझते हैं।
आवश्यकता या आविष्कार का आध्यात्मिक रूप:-
जब हम अपने अंदर झांकते हैं तब हमें पता चलता है कि कोई कमी रह गयी है, जिसे पूरा करना जरूरी है। तब एक आवश्यकता महसूस होती है और यही आवश्यकता एक नए विचार को जन्म देती है, जिसे हम समाधान कहते हैं।
आवश्यकता या आविष्कार का वैज्ञानिक रूप:-
जब आवश्यकता भौतिक होती है तब इसे हम आविष्कार का वैज्ञानिक रूप कहते हैं। जैसे कि, जब एक जगह से दूसरी जगह जाने की ज़रूरत लोगों को महसूस हुई, तो वाहनों और दूसरी यातायात की वस्तुओं का आविष्कार हुआ जिसे बाद में और विकसित किया गया। इससे यह साबित होता है की हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, चाहे वह इस मानव शरीर के बाहर हो या भीतर। इंसान ने अपने अनुरूप सभी चीजों को ढालने की कोशिश की है और यह ज़रूरी भी है क्योंकि आवश्यकता जितनी अधिक होंगी असंतुष्टि भी उतनी ही बढ़ेगी और संतुष्टि होने पर विकास का क्रम रुक जाता है।
आज इंसान एक विकसित जीव के रूप में जाना जाता है क्योंकी हमने बिना संतुष्ट हुए निरंतर आवश्यकताओं को अवसर समझकर नई-नई चीज़ों का अविष्कार किया। मनुष्य ने अपने जीवन को सरल बनाने के लिए शोध जारी रखें और इन्हीं शोधों ने दुनिया को आविष्कार के रूप में कई वस्तुएं दी। जिसका इस्तेमाल इंसान अपने जीवन को सरल और सहज बनाने के लिए करता आ रहा है। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि ज़रूरतें नहीं होती तो किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती और कमी नहीं होती तो आविष्कार नहीं होते। अविष्कारों के बिना हमारा जीवन कैसा होता इसका अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं। ऐसे में हम आवश्यकताओं और आविष्कारों को जीवन के विकास से भी जोड़ सकते हैं।
राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शिनी, सम्बलपुर, उड़ीसा
राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शिनी 21 से 22 दिसंबर 2018 – राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शिनी का आयोजन उड़ीसा के सम्बलपुर में किया गया। इस विज्ञान एवं गणित प्रदर्शिनी में लगभग300 से भी अधिक बच्चों नें अपनी टीमों के साथ हिस्सा लिया। इस आयोजन में मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल एवं जिला कलेक्टर महोदय उपस्थित रहें।
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प्रयोजन का उद्देश्य–
इस तरह के कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य होता विद्यार्थियों की सीमित सोच को आगे तक ले जाकर, उनके भीतर छिपे विज्ञान एवं गणित पर आधारित हुनर को लोगों के सामने पेश करना।
इस तरह के माहौल को देखने, समझने और खुद इसका हिस्सा बनने से बच्चों को अपनी सोच को विकसित करने और अपनी क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है। इस तरह के विज्ञान उत्सव को आम जनता के लिए भी खुला रखा जाता है, जिससे लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित हो सकें।
राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शिनी में स्टेम लर्निंग की भूमिका –
स्टेम लर्निंग इस तरह की प्रदर्शिनी में अपनी सक्रिय भूमिका निभाता है, हम यहां पर बच्चों द्वारा बनाए गए मॉडल्स का चलचित्रण (वीडियो) बनाने के उद्देश्य से शामिल हुए। हमने यहाँ उपस्थित सभी बच्चों द्वारा प्रदर्शित मॉडल्स को रिकॉर्ड किया और उसका वीडियो हमारी वेबसाइट पर अपलोड किया है।
इसके अलावा स्टेम लर्निंग के मॉडल्स द्वारा हमने सभी बच्चों, शिक्षकों एवं लोगों को यह बताने की कोशिश की, कि किताबी पढ़ाई से अलग मॉडल्स की मदद से भी बेहतर तरीके से बच्चों को पढ़ाया जा सकता हैं, और लोगों को यह समझाने के लिए हमने यहां एक स्टॉल लगाया। इसके अलावा हमने अपने मॉडल्स का प्रदर्शन मंच पर भी किया जो सभी को ज्ञानवर्धक एवं रोमांचक लगा। इस विज्ञान प्रदर्शिनी में लगे हमारे स्टॉल पर लगभग 2000 से भी ज्यादा बच्चों एवं शिक्षकों ने आकर हमारे मॉडल्स को वास्तविक रूप से प्रयोग कर इसके फायदों को समझने की कोशिश की। इसका परिणाम यह हुआ कि इनमें से अधिकतर विद्यार्थियों और शिक्षकों ने अपने अनुभवों और विचारों को साझा करते हुए इसे खूब पसंद किया और हमारे मिनी साइंस सेंटर को अपने विद्यालय में स्थापित करने का अनुरोध किया।
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प्यार
पढ़ने में ‘प्यार’ शब्द छोटा-सा और आसान लगता है, लेकिन इसके बारे में जितनी बात की जाए कम ही है। आज के दौर में इस शब्द की परिभाषा बदल गई है। लेकिन फिर भी इसे भावनात्मक रूप से जोड़कर देखा जाता है। यही वह शब्द है जो हर रिश्तें से लोगों को जोड़े रखता है।
अक्सर प्यार, मोहब्बत, इश्क को दिल से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन हकिकत यह है कि किसी से अचानक प्यार हो जाना अपने आप नहीं होता और ना ही इसमें हमारे दिल का कोई हाथ होता है, बल्कि हमारे दिमाग में होनेवाली कुछ रसायनिक क्रियाएं और जीन संबंधी संरचनाएं ही प्यार हो जाने का प्रमुख कारण होती है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि वास्तव में प्यार का एक मनोविज्ञान आधार है, जो हर किसी के समझ से परे है। दरअसल एक व्यक्ति का दूसरे की ओर आकर्षित होना एक रायायनिक प्रक्रिया है, जिसमें दूसरे की आवाज़, शरीर, और उसके हाव-भाव अच्छे लगने लगते हैं और फिर मन में यह बात आती है कि वह व्यक्ति सबसे अच्छा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पिछे रसायन हैं, जो हमें किसी इंसान को आत्मसात करने के लिए तैयार करता है।
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि दो लोगों के बीच रासायनिक मेल होने से ही, आनंद की अनुभूति तथा डोपामाइन, नोरपाइनफेरिन, फिनाइल इथाइलामिन जैसे मस्तिष्क के प्रेम रसायनों का स्त्राव तेज होना जैसी जैविक क्रियाएं होती हैं।
मस्तिष्क में मौजूद एक विशेष अंग ‘हाईपोथेलेमस’ में जब ‘डोपेमाइन’ तथा ‘नोरपाइनफेरिन’ नामक दो न्यूरट्रांसमीटरों की अधिक मात्रा हो जाती है तो यह शरीर में उत्तेजना पैदा करने लगती है। ये न्यूकोट्रांसमीटर मस्तिष्क में उस समय सक्रिय होते हैं, जब दो विपरीत लिंग मिलते हैं। दिमाग के इस हिस्से की सक्रियता के कारण ‘डोपेमाइन’ नामक रसायन का स्तर बढ़ता है और इसकी वजह से फिर एक और रसायन ‘ऑक्सिटोक्सिन’ का स्त्राव भी बढ़ता है, जबकि ‘नोरपाइनफेरिन’ के कारण ‘एड्रिनेलिन’ रसायन का स्त्राव मस्तिष्क में बढ़ता है, जो दिल की धड़कनें तेज़ करता है।
वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के वैल्कम न्यूरोइमेजिंग विभाग के डॉ. एड्रियाज बारटेल्स और प्रोफेसर समीर का कहना है कि प्यार ’खींचो और धकेलो’ की पद्धति पर काम करता है। जब किसी से प्यार होता है तो इंसान उसकी तरफ खिंचा चला जाता है और उसके बारे में नकारात्मक बातों को नजरअंदाज करता है। यही कारण है कि प्यार के बारे में अक्सर कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है।
फिर भी लोगों को लगता है की प्यार भावनात्मक वस्तु है जिसे हम सीमित नहीं कर सकते हैं लेकिन यह संभव है। यह जरूरी नहीं कि प्यार केवल प्रेमी युगल के बीच ही होता है, बल्कि यह किसी भी रिश्ते को बांधने के लिए जरूरी है।
प्यार केवल मानव जाति की ही धरोहर नहीं है, बल्कि यह मानवों की तरह सभी जीव-जंतुओं में पाया जाता है। प्रेम जैसी भावनाओं की कोई सीमा नहीं होती। प्रेम में सबसे अच्छे रिश्तों के उदाहरणों में से एक उदाहरण माँ का हो सकता है जिस प्रेम का अनुभव सभी के लिए अद्भुत होता है।
प्रेम व जीवन-
भले ही प्यार के पीछे आज हमें कई रासायनिक प्रक्रियाओं के बारे में पता चला हो, लेकिन हकिकत यही हैं कि जीवन को आनंदपूर्ण तरीके से गुजारने के लिए उसमें प्रेम रूपी रस का होना अति आवश्यक है, बिना प्यार और मोहब्बत के जीवन नीरस होता है, जीवन को सार्थक बनाने के लिए धन, शक्ति, रूप जैसे सभी प्रकार की संपन्नता ज़रूरी नहीं है, इसके लिए जरूरी है आपसी प्रेम का होना। जहां मनुष्यों के विचारों में समानता होने लगती हैं प्यार का प्रसार अपने आप होने लगता है। प्रेम पूर्वक जीवन व्यतीत करने का आनंद (नेत्रहीन, गूंगा, बेहरा, विकलांग) कोई भी ले सकता है। प्रेम पूर्वक जीवन जगने के लिए सभी अच्छे लगने लगते हैं, कोई द्वेष या बदले की भावना का जन्म संभव नहीं हो पाता, आनंदमय जीवन की पहली जरूरत ही प्यार है।
प्यार का मनोवैज्ञानिक आधार –
प्यार को मनोवैज्ञानिक स्तर पर 3 मूल घटकों द्वारा समझा सकता है जोश, आत्मीयता और प्रतिबद्धता। अपूर्ण या खोखले प्यार में केवल एक या दो मनोवैज्ञानिक घटक ही शामिल हो सकते हैं, यानि जिस संबंध में ये तीनों घटक शामिल हों उसे हम सच्चे प्रेम के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।